रविवार, 26 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 12

बाबा के लिए सब कुछ संभव है !
       बाबा बनारस में थे | दिल्ली से डा० सरजू  प्रसाद दर्शनार्थ आये | इनके मित्र प्रसिद्ध साहियात्कर श्री इंद्र नारायण गुर्टू हृदय रोग से पीड़ित थे | वे विलिंगडन अस्पताल में थे | हालत बिलकुल खराब थी | कंठ अवरुद्ध हो गया था | उनके लिए प्रसाद देने की प्रार्थना श्री सरजू  बाबू  ने की | बाबा ने दो संतरे दिए और कहा – “ जाते हीं इनका रस उन्हें पिला दो , वे अच्छे हो जायेंगे | ”
       लौटने पर डा० प्रसाद सीधे अस्पताल गये | रात के आठ बजे होंगे | संतरों का रस निचोड़ कर श्री गुर्टू को पिला दिया गया | उसी रात चार बजे प्रात: श्री गुर्टू अपने बिछावन पर उठ बैठे और जोरों से “ सीताराम सीताराम ”  
का कीर्तन करने लगे | उनकी आवाज़ खुल गयी न जाने उनमे कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि वे स्वयं उठ कर बैठ गये |
       डा० निराश हो चुके थे श्री गुर्टू का बचना मुश्किल था | सभी को आश्चर्य हो रहा था – रात भर में ऐसा कौन सा चमत्कार हो गया कि उनमे आशातीत सुधार हो गया | जब डाक्टरों को ज्ञात हुआ श्री गुर्टू जी को रात में पूज्य श्री देवरहा बाबा जी  का प्रसाद दिया गया और उन्हीं की कृपा से ऐसा हुआ है तो वे कहने लगे – “ हाँ ,हाँ भाई ! देवरहा बाबा महान योगी एवं संत हैं | वे सर्वशक्तिमान हैं कुछ भी कर सकते हैं | बाबा के लिए सब कुछ संभव है | उनकी कृपा से हीं ऐसा संभव है |
       देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
       प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त

शनिवार, 25 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 11

सपने में किया प्रवेश !
पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय , सम्पादक ‘ अंजोर ’ एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार और वकील हीं नहीं थे वरन एकांत साधक भी थे , इसे कम लोग हीं जानते हैं | वे परमयोगी श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की शिष्य परम्परा में श्री वनमाली बनर्जी ( भागलपुर ) से दीक्षित थे |एक दिन वे बाबा के श्री चरणों में मंच के निकट बैठे थे | अचानक बाबा ने प्रश्न किया –  “ अरे भक्त कुछ करते हो ?”
-    जी हाँ प्रभु थोडा बहुत |
-    अपनी क्रिया दिखा सकते हो ?
-    क्षमा करें प्रभु ! गुरु की आज्ञा है कि क्रियाएं गुप्त हैं ,परिधि के बाहर के लोगों में इन्हें नहीं दिखाना |
बाबा हँस कर चुप हो गये सहज हीं और और्व बातें होने लगी | कुछ देर बाद बाबा ने प्रशाद दे कर सबकी छुट्टी कर दी | सहाय जी भावुक व्यक्ति थे | उनका मन दुविधा में पड़ा रहा | घर पर आ कर वे खा पी कर सो गये |
       स्वप्ने में हीं उन्होंने देखा कि वे अपने मकान के दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे में बैठे हैं | सामने वनमाली बनर्जी बैठे हैं और योगाभ्यास करा रहे हैं |
       इसी बिच सहाय जी के पुत्र ने आ कर सूचना दी की एक महात्मा पधारे हैं | बनर्जी साहब ने कहा “ सादर लिवा लाओ |” थोड़ी देर बाद देवरहा बाबा उपर आये | वनमाली बनर्जी बड़े प्रेम से उन्हें मिले और दोनों अगल बगल बैठ गये | सहाय जी की योगक्रिया थोड़ी देर के लिए रूक गयी | वे दुविधा में पड़े रहे | इसी समय उनके गुरुदेव बनर्जी साहब ने कहा – “ अरे रुके क्यों हो ? तुम दिखाओ | इनमे और मुझमे कोई भेद न समझना | ”
       गुरुदेव की आज्ञा से सभी क्रियाओं की पुनरावृति सहाय जी ने की | क्रिया समाप्त होते हीं नींद खुल गयी | सहाय जी स्वप्न का मर्म समझ गये | उन्हें बड़ा मानसिक क्लेश हुआ | देवरहा बाबा को उन्होंने परिधि से बाहर क्यों माना | फिर उन्हें नींद नहीं आई | वे प्रात: हीं उद्विग्न मन से देवरहा बाबा के पास जा कर उपस्थित हुए |
       बाबा स्नान करके ,कुश की आसनी लपेटे बड़ी तेजी से गंगा की धार से निकले और मंच पर चढ़ गये | थोड़ी देर बाद कुटिया से बाहर आये |
       सहाय जी ने  साश्रुनयन निवेदन किया – “ महराज मुझे क्षमा करें | कृपा याचना के लिए आया हूँ | मुझसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है |
-    अरे भक्त इस प्रकार चंचल क्यों होते हो |
-    मैं अपनी क्रिया दिखाने आया हूँ महराज !
-    मैं तो देख चुका भक्त ! चिंता मंत करो | कष्ट करने की जरूरत नहीं |
और सहाय जी सन्न रह गये | तो क्या  सचमुच रात के स्वप्न में प्रभु दरी  बाबा ने प्रभु श्री वनमाली बनर्जी के साथ सहाय जी के क्रियाओं अवलोकन किया था ? तभी तो मुस्कान के साथ उन्होंने कहा था –“मैं तो देख चुका |”
देवरहा बाबा के चरणों में सादर  नमन _/\_ 
 प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त


शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 10

प्रकाशमय वृत और वर्षा 

अगस्त 1970 की कृष्णाष्टमी का दिन | बरसाती  मौसम | श्री  बाबा  का  बबूल  वन भी  जलमग्न | प्रो ० कुलानन्द ठाकुर , सियाराम सिंह और लल्लू जी नाव  से दर्शनार्थ  पहुंचे | और  भी  बहुत से लोग थे | साधू संत पानी में खड़े थे | बाबा मंच कुटी से बाहर आये | साधुओं को विदा किया | पुकार हुई और सियाराम सिंह मित्रों के साथ कुटी के निकट जल में खड़े हो गये | इतने में हीं पुन : जोरो की वर्षा होने लगी | सियाराम सिंह ने आश्चर्य से देखा उनके और प्रोफेसर मित्र के कपड़ों पर पानी का कोई असर नहीं हो रहा था | ध्यान देने पर पता लगा कि वहां किसी के कपड़े नहीं भींग रहे थे | वर्षा हो रही थी मूसलाधार पानी पड़ रहा था | किन्तु खुले आसमान के निचे खड़े कई लोग वर्षा के प्रभाव से अछूते खड़े थे | श्री बाबा के शरीर के चारो ओर एक प्रकाशमय वृत खिंचा हुआ था | वर्षा की बड़ी बड़ी बूँदें उसके बाहर हीं पड़ रही थी | वृत के भीतर नहीं | विस्मय की बात थी | आँखों को विशवास नहीं हो रहा था , किन्तु हाथ कंगन को आरसी क्या ?
       कृपालु बाबा ने रहस्यात्मक ढंग से मुस्कुराते हुए कहा – “क्या बच्चा छुट्टी कर दूं ? बहुत जोरों की वर्षा हो रही है |”
-    हमलोग  पर तो बाबा एक बूँद का भी असर नहीं हो रहा है | वर्षा होने से क्या ?
-    हाँ बच्चा सो तो ठीक है | परन्तु निचे भी तो बाढ़ के कारण जल है , बैठने के लिए कहीं सूखा स्थान नहीं | इसलिए जल्दी फुर्सत कर दूं तो अच्छा है |
और शिष्यगण प्रसाद ले कर विस्मित मन विदा हुए | श्री बाबा की असीम शक्ति ने वर्षा की बूंदों को भी प्रभावहीन कर दिया था |


देवरहा बाबा के चरणों में नमन _/\_
साभार : प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त 




बुधवार, 22 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार 9

फाइल को पंख लग गए !


बिहार विद्युत् बोर्ड के उपनिदेशक के पद पर काम करने वाले शर्मा जी के एक मित्र थे | वे सिविल सर्विस में थे | उनकी प्रोन्नति का मामला विचाराधीन था | गाडी अटकी थी कुछ बिन्दुओं पर जांच थी | अकारण विलम्ब हो जाने की परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती थी | वे बड़े चिंतित थे | वे बाबा के दर्शनों में उपस्थित हुए |
बाबा ने कहा – “ चिंता मत कर भक्त ! तू तरक्की चाहता है , और बड़ा हाकिम बनना चाहता है |”
-    “हाँ बाबा मेरी प्रोन्नति की फाइल दो वर्षों में जहाँ की तहां पड़ी है |”
-    “और तुम्हारे मातहत तुमसे आगे निकल गये |” - बाबा ने कहा
-    “हाँ बाबा इसी में मिजाज खिन्न रहता है |”
-    “ इन छोटी चीजों की चिंता व्यर्थ है | मन क्यों छोटा करता है | बड़ी चीज की चिंता कर | यों , जाओ तुम्हारी तरक्की होगी | शीघ्र हीं तुम बड़ा हाकिम बन जायेगा और अपने मातहत में शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा |”
और जो फाइल दब दब जाती थी , वह तेजी से दोड़ने लगी | पंख लग गये उसे | एक पखवारे के भितर हीं अपने अपने आप हीं सरकने नहीं दोड़ने लगी | प्रोन्नति की चिट्ठी पा कर उस अधिकारी को भी आश्चर्य हुआ | बाबा ने बिना कहे हीं उसकी विपत्तियों का अनुमान कर आशीर्वाद दिया जो इतना जल्द फलीभूत हुआ |
संत और ईश्वर की कृपा हो तो कुछ भी हो सकता है |
देवरहा बाबा के चरणों में नमन _/\_
प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से साभार प्राप्त 



मंगलवार, 21 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार – 8

धरती की प्यास बूझी

14 सितम्बर 1979 को उतर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री तपासे श्री बाबा के दर्शनों में लार रोड पहुंचे | उन्होंने प्रार्थना की – बाबा वर्षा बिलकुल नहीं हुई है | लोग बेहाल हैं | सूखा से जनता की रक्षा के लिए महराज जी कृपा कर जलवृष्टि करवायें |
श्री बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा – “ यह सूखा नेताओं के पाप से पड़ा है सभी नेता पाप में लीन है जिससे प्रकृति कुपित हो उठी है | ” इसके साथ हीं श्री बाबा ने अनेक विलक्षण एवं अदभुत भविष्यवाणियों के साथ आश्चर्यजनक विवरण प्रस्तुत किये | तपासे के बात से बाबा प्रसन्न दिखते   थे | एक नेता तो मिला जो दर्शन के समय अपने लिए , अपनी सता के लिए , अपनी कुर्सी और परिवार के लिए कुछ न मांग कर समग्र जनता के लिए कुछ मांगने आया है | श्री बाबा जब प्रसन्न होते तो प्रसाद की वर्षा करते हैं | बाबा ने फलों का प्रसाद इतना दिया की एक बड़ी गठरी हो गयी | छुट्टी  होने पर जब राज्यपाल का सुरक्षा अधिकारी प्रसाद की गठरी उठाने लगा तो तपासे ने मना कर दिया | उन्होंने पुन : साष्टांग दंडवत किया और स्वयं गठरी उठा कर पैदल ही घेरे के बाहर खड़ी अपनी कार कि ओर चलने लगे |
श्री बाबा ने प्रसन्नता से हँसते हुए ताली बजा कर कहा – “ देखो , किसान का बेटा बोझ ढो रहा है | इसे बोझ के भार ढोने से गरीब लोगों के बोझ ढोने का अनुभव होगा |”
‘ तप सुखप्रद दुःख दोष नसावा |’बोझ ढो कर महामहिम ने तप किया श्री तपासे की प्रार्थना स्वार्थ के लिए नहीं जन जन के हित के लिए थी | महापुरुष इससे अति प्रसन्न होते हैं | श्री बाबा ने भी प्रसन्नतापूर्वक तपासे की श्रधा भावना को देखते हुए उनकी प्रार्थना सुनी | दर्शन के कुछ हीं देर बाद जोरों की वृष्टि हुई | मेघों ने उमड़ घुमड़ कर प्यासी धरती की प्यास बुझाई | यह संवाद 16 सितम्बर , 1979 के दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ |
आज भी श्री  बाबा की कृपा सदैव बरसती है |
“ देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन _/\_ ”
साभार – प्रो ० ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त



रविवार, 19 जुलाई 2015

देवरहा बाबा के चमत्कार - 7

जित देखों तित लाल 


श्री संजय कुमार चन्दन 16 जनवरी 1976 को बाबा के दर्शनार्थ मुजफ्फरपुर ( बिहार ) से अपनी कार द्वारा  चले | वे बिलकुल नास्तिक  थे | मांस मछली का सेवन दैनिक नियम था | माता पिता और मामा ने आग्रहपूर्वक उन्हें दर्शन में चलने को कहा था |  अत : वे साथ हो लिए थे |
       अब कार गोपालगंज ( बिहार ) से दस पन्द्रह किलोमीटर आगे पहुंची थी | चन्दन आगे बैठे थे | उनके पिता कार चला रहे थे | बगल में उनकी माँ थी | अचानक चन्दन में विचित्र परिवर्तन हुआ | वह जिधर नजर डालता उसे बाबा हीं दिखाई देते | सामने , बगल में , पीछे , स्टीयरिंग  पर – हर जगह बाबा हीं बाबा | वह घबडा गया उसके मुंह से चीख निकल पड़ी | वह बेहोश हो गया | बेहोशी में भी वह बडबडाता रहा – ‘ गलती हो गयी | क्षमा करो भगवन | मैंने पहचाना नहीं | तुम्हारे विराट रूप से अनभिज्ञ था | ’ उसे बाबा का डरावना और विकराल विराट रूप हीं दृष्टिगोचर होता रहा | माँ बाप घबडा उठे | कार करीब ग्यारह बजे रात को बाबाधाम ( आश्रम ) पहुंची |
       आश्रम में पहुँचने पर चन्दन पुरे होश में आ गया था | उसे आश्चर्य हुआ कि बाबा उस रात को भी मंच पर विराजमान थे | उस अँधेरी रात में भी बाबा ने चन्दन के पिता जी से कहा – ‘ बच्चा रामकिशोर भक्त ! चले आओ मैं तुम्हे दर्शन देता हूँ | ’
       सभी लोग मंच के निकट गये | रामकिशोर जी ने रास्ते की सारी घटना कह सुनाई | बालक चन्दन डर के मारे रो रहा था | बाबा ने स्नेह युक्त वाणी में कहा – ‘ सब प्रेम की लहर है बच्चा | बालक भक्त है , पर सांसारिक जाल में है | आओ , मैं इसका कल्याण कर देता हूँ |’
       बाबा इसी तरह प्रेम और भक्ति का लहर फेकते रहते हैं ताकि जीवों का कल्याण हो सके |
                           देवरहा बाबा के चरणों में सादर प्रणाम _/\_
साभार – प्रो ०  ब्रजकिशोर जी के पुस्तक से प्राप्त